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Home Literature

चेखव की कहानी दुख: जब दुख सुनने वाला कोई न हो!

सुधांशु गुप्त by सुधांशु गुप्त
November 2, 2021
in Literature
Reading Time: 3 mins read
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कहानी

Image by Anemone123 from Pixabay

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बीसवीं सदी के महानतम कहानीकार चेखव अपनी मृत्यु के 117 साल बाद भी अपनी कहानियों में जीवित हैं। चेखव की एक बेहद लोकप्रिय और पढ़ी गई कहानी है ‘ग्रीफ’ यानी दुख। कहानी पर बात करने से पहले कहानी का सारः 

शाम का समय है। सड़क के खंभों की रोशनी के चारों और बर्फ की एक गीली और मोटी परत धीरे-धीरे फैलती जा रही है। बर्फबारी के कारण कोचवान योना किसी सफेद प्रेत सा दिखने लगा है। आदमी की देह जितनी भी मुड़कर एक हो सकती है, उतनी उसने कर रखी है। वह अपनी घोड़ागाड़ी पर बिना हिले डुले चुपचाप बैठा है। योना और उसका छोटा सा घोड़ा, दोनों ही बहुत देर से अपनी जगह से हिले नहीं हैं। वे खाने के समय से ही अपने बाड़े से निकल आए थे, पर अभी तक उन्हें कोई सवारी नहीं मिली है।

‘ ओ, गड़ीवाले, विबोर्ग चलोगे क्या’ योना को अचानक सुनाई प़ड़ता है।

हड़बड़ाहट में योना अपनी जगह से उछल जाता है। अपनी आँखों पर जमा हो रही बर्फ के बीच से वह धूसर रंग के कोट में एक अफसर को देखता है, जिसके सिर पर उसकी टोपी चमक रही है। 

अफसर फिर कहता है, ‘अरे सो रहे हो क्या, मुझे विबोर्ग जाना है।’

चलने की तैयारी में योना घोड़े की लगाम खींचता है। घोड़े की गर्दन और पीठ पर पड़ी बर्फ की परतें नीचे गिर जाती है। अफसर पीछे बैठ जाता है। योना ज्यों ही घोड़ा गाड़ी को आगे बढ़ाता है, अंधेरे में आ-जा रही भीड़ में से उसे सुनाई देता है, ‘अबे क्या कर रहा है, जानवर कहीं का, इसे कहां ले जा रहा है, मूर्ख, दाएँ मोड़।’

‘तुम्हें तो गाड़ी चलाना ही नहीं आता, दाहिनी ओर रहो,’ पीछे बैठा अफसर जोर से चीखता है। 

कोचवान योना मुड़कर अफसर की ओर देखता है। उसके होंठ जरा-सा हिलते हैं। शायद वह कुछ कहना चाहता है। 

‘क्या कहना चाहते हो तुम’ अफसर उससे पूछता है।

योना जबरदस्ती अपने चेहरे पर मुस्कराहट ले आता है और कोशिश करके फटी आवाज़ में कहता है, ‘मेरा इकलौता बेटा वारिन इस हफ्ते गुज़र गया साहब।’

‘अच्छा कैसे मर गया वह?’

योना अफसर की ओर मुड़ता है और बोलता है  ‘क्या कहूं साहब, डॉक्टर तो कह रहे थे, सिर्फ तेज बुखार है, बेचारा तीन दिन तक अस्पताल में पड़ा तड़पता रहा और फिर हमें छोड़कर चला गया…भगवान की मर्जी के आगे किसी चलती है!’

‘अरे, शैतान की औलाद ठीक से मोड़ ’ अंधेरे में कोई चिल्लाया, ‘अबे ओ बुड्ढे, तेरी अक्ल क्या घास चरने गई है। अपनी आँखों से काम क्यों नहीं लेता?’

‘जरा तेज चलाओ…और तेज…’ अफसर चीखा, नहीं तो हम कल तक भी नहीं पहुंच पाएंगे, जरा और तेज…यकहकर अफसर आँख बंद कर लेता है। साफ है कि इस समय वह कुछ नहीं सुनना चाहता। 

अफसर को विबोर्ग पहुंचा कर योना शराबखाने के पास गाड़ी खड़ी कर देता है। दो घण्टे इसी तरह बीत जाते हैं। तभी उसके पास तीन लड़के झगड़ते हुए आते हैं। उनमें से एक कहता है, ‘ओ गाड़ीवाले, पुलिस ब्रिज चलोगे क्या, हम तुम्हें बीस कोपेक देंगे। ’

तीनों लड़के घोड़ागाड़ी में बैठ जाते हैं। वे तीनों किशोर भी लगातार उससे गाड़ी तेज चलाने के लिए कहते रहते हैं। इन तीनों किशोरों के साथ भी उसका अकेलापन दूर नहीं हो पाता और न ही वह अपने बेटे की मृत्यु की बात उनसे साझा कर पाता  है। 

योना एक बार फिर उनसे कहता है, मेरा बेटा इसी हफ्ते गुज़र गया। 

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तीनों में से एक कहता है, हम सबको एक दिन मरना है, तुम जरा जल्दी चलाओ, खूब तेज…।

योना फिर उनसे बताना चाहता है कि उसका बेटा कैसे मर गया। तभी उनमें से एक किशोर कहता है, ‘शुक्र है ख़ुदा का, आखिर मेरे साथियों को तुमने पहुंचा ही दिया।’ योना उन सबको अंधेरे फाटक के पार धीरे-धीरे गायब होते देखता है। एक बार फिर वह ख़ुद को बेहद अकेला महसूस करता है। सन्नाटे से घिरा हुआ…उसका दुख जो थोड़ी देर के लिए कम हो गया था, फिर लौट आता है, और इस बार और भी ताकत से उसके हृद्य को चीर देता है। 

लगभग डेढ़ घंटे बाद योना एक बहुत बड़े गंदे से स्टोव के पास बैठा हुआ है। स्टोव के आस-पास जमीन और बेंचों पर बहुत से लोग खर्राटे ले रहे हैं। हवा दमघोंटू गर्मी से भारी है। योना सोए हुए लोगों की ओर देखते हुए ख़ुद को खुजलाता है…उसे अफसोस होता है कि वह इतनी जल्दी क्यों चला आया। 

आज तो मैं घोड़े के लिए भी नहीं कमा पाया, वह सोचता है। 

एक युवा कोचवान एक कोने में थोड़ा उठकर बैठ जाता है और आधी नींद में बड़बड़ाता है। फिर वह पानी की बाल्टी की तरफ बढ़ता है। 

‘क्या तुम्हें पानी चाहिए?’ योना उससे पूछता है।

‘यह भी पूछने की बात है?’

‘अरे नहीं दोस्त, तुम्हारी सेहत बनी रहे, लेकिन क्या तुम जानते हो कि मेरा बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा…तुमने सुना क्या? इसी हफ्ते…अस्पताल में…बड़ी लंबी कहानी है।’

पढ़िएः अनिल प्रभा कुमार की कहानीः इन्द्रधनुष का गुम रंग

योना अपने कहे का असर देखना चाहता है, पर वह कुछ नहीं देख पाता। उस युवक ने अपना चेहरा छुपा लिया है और गहरी नींद में चला गया है। योना लंबी सांस लेकर अपना सिर खुजलाता है। उसके बेटे को मरे एक हफ्ता हो गया लकिन वह इस बार में किसी से ठीक से बात नहीं कर पाया। बहुत धीरे-धीरे और बड़े ध्यान से ही यह सब बताया जा सकता है कि कैसे उसका बेटा बीमार पड़ा, कैसे उसने दुख भोगा, मरने से पहले उसने क्या कहा और कैसे उसने दम तोड़ दिया। दफ्न के वक्त की एक-एक बात बताना भी जरूरी है और यह भी कि उसने अस्पताल जाकर बेटे के कपड़े लिए। उस समय उसकी बेटी अनीसिया गांव में ही थी। उसके बारे में बताना जरूरी है। उसके पास बताने के लिए इतना कुछ है। सुनने वाला जरूर एक लंबी सांस लेगा और उससे सहानुभूति जताएगा। औरतों से बात करना अच्छा है, हालांकि वे बेवकूफ होती हैं। उन्हें रुला देने के लिए तो भावुकता भरे दो शब्द ही काफी होते हैं।

चलूं…जरा अपने घोड़े को देख लूं, योना सोचता है। वह अस्तबल में घोड़े के पास जाता है। वह अनाज, सूखी घास और मौसम के बारे में सोचता है। अपने बेटे के बारे में अकेले में सोचने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाता। वह घोड़े से कहता है, मैं अब बूढ़ा हो गया हूं…मेरा बेटा घोड़ागाड़ी चला सकता था। कितना शानदार कोचवान था, मेरा बेटा। काश वह जीवित होता। एक पल के लिए योना चुप हो जाता है, फिर कहता है, हां मेरे पुराने प्यारे दोस्त, यही सच है। कुज्या योनिच अब नहीं रहा। वह हमें जीने के लिए छोड़कर चला गया। सोचो तो जरा, तुम्हारा एक बछड़ा हो, तुम उसकी मां हो और अचानक वह बछड़ा तुम्हें अपने बाद जीने के लिए छोड़कर चल बसे। कितना दुख पहुंचेगा तुम्हें, है न? 

उसका छोटा सा घोड़ा अपने मालिक के हाथ पर सांस लेता है, उसकी बात सुनता है और उसके हाथ को चाटता है। 

अपने दुख के बोझ से दबा हुआ योना उस छोटे से घोड़े को अपनी सारी कहानी सुनाता है। 

बस, कहानी इतनी ही है। 

चेखव की यह कहानी लंबे समय से पढ़ी और पसंद की जाती रही है। आखिर इस कहानी में ऐसा क्या है जो इसे कालजयी बनाता है! यह कहानी दुख की कहानी है। अपने दुख को साझा करने की कहानी है। एक इंसान के निरंतर अकेले हो जाने की कहानी है। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए, अपने दुख को साझा करने के लिए इंसान किस तरह अपने घोड़े को अपना दुख सुनाकर हल्का होता है, यही कहानी है। लेकिन चेखव ने योना को अकेला करने के लिए पूरा परिवेश क्रिएट किया।

वह अपनी सवारियों से अपना दुख शेयर करना चाहता है, कई अन्य लोगों से भी वह अपने बेटे की मौत का दुख बांटना चाहता है, जब वह हर तरफ से निराश हो जाता है तो वह अंत में घोड़े को अपना दुख सुनाता है। कहानी में चेखव ने योना के अकेले होते जाने का निहायत शानदार चित्रण किया है। इस घोर अकेलेपन के बाद ही वह घोड़े को चुनता है या यह भी कह सकते हैं कि उसके दुख को सुनने की केवल और केवल घोड़े को ही फुर्सत है। एक ऐसा व्यक्ति जो चौबीसों घंटे महफिलों में उठता बैठता है, घोड़े को अपना दुख नहीं सुना सकता, क्योंकि उसके पास सुनने वाले बहुत से लोग मौजूद होंगे। कहानी का महत्व यही है कि योना नितांत अकेला हो गया है। दिलचस्प बात है कि मनुष्य का यह अकेलापन पिछले सौ सालों में और बढ़ा है। यही वजह है कि चेखव की यह कहानी बराबर जीवित है और तब तक जीवित रहेगी जब तक दुनिया में अकेलापन है।

कहानी को यहां से देखिएः प्रेम करो तो ऐसे

 

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सुधांशु गुप्त

तीन दशकों तक पत्रकारिता करने के बाद सुधांशु गुप्त अब पूरी तरह से साहित्य में रम गए हैं. आपके तीन कहानी संग्रह 'खाली कॉफी हाउस', 'उसके साथ चाय का आख़िरी कप' और 'स्माइल प्लीज़' प्रकाशित हो चुके हैं. आपकी कहानियां, सामाजिक ताने-बाने पर लेख और समीक्षाएं सारिका, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नया ज्ञानोदय, नवनीत, कादम्बिनी, दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, जनसत्ता, हरिभूमि, जनसंदेश, जनवाणी आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं और होती रहती हैं. रेडियो पर आपकी कई कहानियों का प्रसारण हो चुका है.

सुधांशु गुप्त

सुधांशु गुप्त

तीन दशकों तक पत्रकारिता करने के बाद सुधांशु गुप्त अब पूरी तरह से साहित्य में रम गए हैं. आपके तीन कहानी संग्रह 'खाली कॉफी हाउस', 'उसके साथ चाय का आख़िरी कप' और 'स्माइल प्लीज़' प्रकाशित हो चुके हैं. आपकी कहानियां, सामाजिक ताने-बाने पर लेख और समीक्षाएं सारिका, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नया ज्ञानोदय, नवनीत, कादम्बिनी, दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, जनसत्ता, हरिभूमि, जनसंदेश, जनवाणी आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं और होती रहती हैं. रेडियो पर आपकी कई कहानियों का प्रसारण हो चुका है.

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