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Home Literature

कहानी को यहां से देखिए: हमें ‘आइना’ दिखाती मुराकामी की कहानी!

NRI Affairs News Desk by NRI Affairs News Desk
July 20, 2021
in Literature
Reading Time: 3 mins read
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कहानी को यहां से देखिए: हमें ‘आइना’ दिखाती मुराकामी की कहानी!
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सुधांशु गुप्त कहां से देख रहे हैं हारूकी मुराकामी की कहानी.

हारुकी मुराकामी की यह कहानी, आप कह सकते हैं कि भूत प्रेतों की कहानी है। लेकिन यहां भूत-प्रेत भारतीय नहीं हैं।

पहले कहानी-आइना- का सार देख लेते हैः 

कुछ मित्र भूत प्रेतों से जुड़े अपने डरावने अनुभव सुना रहे हैं। नायक अपनी कहानी 1960 के दशक से शुरू करता है। मैं विद्यालय की शिक्षा पूरी कर चुका था। मेरी आगे की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी। मैं इधर-उधर छोटी मोटी नौकरियां करता रहा। पूरे देश में घूमते रहने के बाद मुझे पतझर के दौरान कुछ महीने के लिए एक विद्यालय में चौकीदार की नौकरी मिली। रात के समय चौकीदारी करने के लिए कुछ विशेष नहीं करना पड़ता था। रात में केवल दो चक्कर लगाकर यह सुनिश्चित करना होता कि सब ठीक है।

यह एक बड़ा स्कूल नहीं था। कक्षा के कमरों के अलावा संगीत शिक्षण के लिए एक कमरा था, कला शिक्षण के लिए एक स्टूड़ियो था और एक विज्ञान प्रयोगशाला थी। विद्यालय की तिमंजिला इमारत थी। मुझे दो बार-नौ बजे और तीन बजे रखवाली करते हुए पूरे विद्यालय का चक्कर लगाना होता था। मैं बाएं हाथ में टॉर्च और दायें हाथ में लकड़ी की पारंपरिक तलवार रखता था। एक रात मुझे कुछ अजीब सा महसूस हुआ। यह वाकई अजीब सी रात थी। जैसे जैसे रात गहरी होती जा रही थी हवा की रफ्तार बेहद तूफानी होती जा रही थी। मैं हर जगह जांच सूची पर सही का निशान लगाता जा रहा था। लेकिन मुझे कहीं कुछ अजीब सा लग रहा था।

अब मुझे विज्ञान प्रयोगशाल को देखना था। यहां तक पहुंचने के लिए मुझे लम्बे गलियारे को पार करना था। मैं अन्य दिनों की अपेक्षा तेजी से गलियारे को पार करने लगा। अचानक वहां मुझे एक आदमकद आइना दिखाई दिया। उसमें मेरा प्रतिबिंब नज़र आ रहा था। पिछली रात तो यहां कोई आइना नहीं था। हो सकता है कल किसी ने यह आइना यहां रख दिया हो। मैंने जेब से एक सिगरेट निकाली और सुलगा ली।

गहरा कश लेकर मैंने उस आइने में अपने प्रतिबंब पर नज़र डाली। अचानक मुझे लगा कि आइने में दिख रहा प्रतिबिंब दरअसल मेरा प्रतिबंब नहीं था। जो बात मैं समझ पा रहा था वह थी कि आइने में मौजूद प्रतिबिंब मुझसे बेइंतहा नफरत करता था। उसके भीतर भरी घृणा अंधेरे समुद्र में तैर रहे किसी हिम खण्ड सी थी। मैं बहुत डर गया था। भीतर से अपनी सारी शक्ति एकत्रित करके मैं जोर से चीखा और मुझे अपनी जगह पर जकड़कर रखने वाले सारे बंधन जैसे टूट गए। मैंने अपनी तलवार उस आदमकद आइने पर दे मारी। मुझे कांच के चटखकर चूर चूर होने की आवाज़ सुनाई दी। मैं वहां से भागा और सीधा अपने कमरे में रजाई में घुस गया।

दरअसल वहां कोई आइना था ही नहीं।  

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सूर्योदय होने से पहले ही चक्रवात का कहर खत्म हो चुका था। तूफानी हवा चलनी बंद हो गई थी। धुपहला दिन निकल आया था। मैंने वहां जो देखा वह भूत नहीं था। वह तो मैं ही था। मैं इस बात को कभी नहीं भूल पाता कि मैं उस रात कितना डर गया था। जब भी मुझे वह रात याद आती है मेरे ज़हन में यही विचार कौंधता हैः विश्व में सबसे डरावनी चीज़ हमारा अपना ही रूप है। 

बस कहानी इतनी ही है। 

हारुकी मुराकामी जापानी उपन्यासकार हैं। इनकी कृतियां पचास से अधिक भाषाओं में अनुदित हो चकी हैं। मुराकामी की लिखने की अपनी शैली है। जरा सोचिए किसी हिन्दी कथाकार ने इस कहानी को लिखा होता तो इसे पूरी तरह भूत प्रेतों की कहानी में तब्दील कर देता। लेकिन मुराकामी बड़े सलीके से कहानी को जीवन से जोड़ते हैं। आइने के सामने भी वह कहते हैं, आइने में मौज़ूद प्रतिबिंब मुझसे बेइंतहा नफ़रत करता था। यानी इंसान के भीतर का जो डरावना रूप है वह गैर डरावने व्यक्ति से नफ़रत ही करेगा।

मुराकामी ने पूरी कहानी में एक डर क्रिएट किया है। पूरा परिवेश डरावना है, लेकिन कहानी को भूत प्रेत की कहानी उन्होंने नहीं बनने दिया, बल्कि जीवन के उस सच का उद्घाटित किया है, जिसे आमतौर पर लेखक अनदेखा कर जाते हैं। इस कहानी की एक और ख़ास बात यह है कि मुराकामी परिवेश और किरदारों के बहाव के साथ नहीं चलते। उनका अपना रास्ता है जिस पर चलकर वह सच तक पहुंचते हैं। अब आप ही सोचिए कौन इस कहानी को पढ़कर जीवन भर भूल सकता है। 

परिचयः कहानियां लिखते हुए तीन दशक हो चुके हैं, लेकिन जो चाहता हूं उसका पांच प्रतिशत भी नहीं लिख पाया। कहने को तीन कहानी संग्रह-खाली कॉफ़ी हाउस, उसके साथ चाय का आख़िरी कप, स्माइल प्लीज़ छप चुके हैं। चौथा संग्रह ‘तेरहवां महीना’ भी पूरी तरह तैयार है। लेकिन लिखना मेरे भीतर के असंतोष को बढ़ाता है। और यही असंतोष मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए मैं जीवन में किसी भी स्तर पर संतोष नहीं चाहता! किताबों से मेरा प्रेम ज़ुनून की हद तक है। कहानियां मेरे जीवन में बहुत अहम हैं लेकिन वे जीवन से बड़ी नहीं हैं। 

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