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Home Literature

कहानी को यहां से देखिएः प्रेम करो तो ऐसे

सुधांशु गुप्त by सुधांशु गुप्त
October 16, 2021
in Literature
Reading Time: 2 mins read
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कहानी को यहां से देखिएः प्रेम करो तो ऐसे

Photo by Kiki Anemozaly from Pexels

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दुनिया के महान कहानीकार मोपासां की मृत्यु को 125 साल से अधिक का समय बीत चुका है। फिर भी उनकी कहानियों का प्रभाव कम नहीं होता। आज हम बात करेंगे उनकी एक कहानी ‘प्रेम करो तो ऐसे’ की।

पहले कहानी का सारः 

दूर तक फैली एक पहाड़ी पर प्राचीन शैली की  हवेली में बैठक के पास एक वृद्ध महिला आरामकुर्सी पर लेटी हुई है। उसके हाथ एक ओर को लटके हुए हैं। उसकी उम्र इतनी अधिक थी कि यदि वह हिलती डुलती नहीं तो उसके मृत होने का संदेह पैदा हो जाता। उसके पास ही स्टूल पर एक युवती बैठी हुई है और उसके सुंदर केश उसकी गर्दन पर लहरा रहे हैं। चिंता की लकीरें उसके चेहरे पर दिखाई दे रही हैं। उसकी उंगलियां बेशक कपड़े पर कढ़ाई कर रही हैं, लेकिन उसका मन किसी और दुनिया में खोया हुआ है। 

वृद्धा अचानक अपना सिर उठाकर युवती से कहती है, बैर्ते, अखबार से कुछ पढ़कर सुनाओ, मुझे भी पता चले कि दुनिया में क्या कुछ चल रहा है।

युवती अखबार पर नजरें डालती है और कहती है, दादी मां इसमें अधिकतर खबरें राजनीतिक हैं, क्या इन सबको छोड़ दूं?

‘हां, हां डार्लिंग…क्या कोई प्रेम प्रसंद से जुड़ी खबर नहीं है? ’ क्या फ्रांस में रसिकता और प्रेम मर चुका है, जो पहले की तरह अब प्रेम प्रसंगों की चर्चा नहीं हुआ करती। 

युवती काफी देर अखबार को खंगालती रहती है। फिर कहती है, ‘एक खबर है, इसका शीर्षक है-एक प्रेम प्रसंग। ’

वृद्धा अपने झुर्री भरे चेहरे पर मुस्कराहट बिखेरते हुए कहती है, ‘मुझे यह पढ़कर सुनाओ।’

युवती वह खबर पढ़ना शुरु करती है। वह खबर तेजाब उडेलने की घटना है। एक पत्नी ने अपने पति की रखैल से बदला लेने के लिए, उसके चेहरे और आँखों को जला दिया था। ’

दादी मां एकदम से कुर्सी पर घूमती हैं और चकित होते हुए कहती हैं, यह तो ख़ौफनाक है, एकदम भयंकर, डार्लिंग ज़रा और देखो, शायद तुम्हें मेरी पसंद का कोई समाचार मिल सके। 

युवती फिर से अखबार में दादी की पसंद की खबर तलाश करने लगती है। उसे एक और खबर दिखाई पड़ती है जिसमें एक कामकाजी युवती, जो अधिक युवा नहीं थी, स्वयं को एक युवक को सौंप देती है। लेकिन वह स्थिर चरित्र का नहीं निकलता। लिहाजा बदला लेने के लिए वह अपने प्रेमी को गोलियों से घायल कर देती है। कोर्ट भी युवती को बरी कर देता है। 

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दादी कहती हैं, आज के लोग पागल हो गए हें बिल्कुल पागल। भगवान ने तुम्हें प्रैम जैसा हसीन तोहफा वरदान के रूप में दिया है। हमारे नीरस जीवन में खुशी की एकमात्र किरण यह प्रेम, जिसे तेजाब और बंदूकों से दूषित किया जा रहा है। 

युवती अपनी दादी की बात समझ नहीं पाती। वह कहती है, दादी, उस महिला ने सही किया, वह उसकी विवाहिता थी और उसका पति उसे धोखा दे रहा था। विवाह तो पवित्र बंधन है ना।

दादी कहती हैं, क्या प्यार पवित्र होता है? मैंने तीन पीढ़ियों को देखा है और मुझे स्त्री पुरुष संबंधों का भी काफी गहन अनुभव है। विवाह और प्रेम में कोई समानता नहीं। हम परिवार की रचना के लिए विवाह करते हैं और विवाह के अस्तित्व को नकार नहीं सकते। समाज हमें विवाह करने के लिए बाध्य करता है, इसलिए हम विवाह करते हैं। लेकिन हम अपने जीवन में विवाह कई बार कर सकते हैं। प्रकृति ने हमें ऐसा ही बनाया है। विवाह एक कानून है तो प्रेम मूल प्रवृत्ति, जो हमें कभी सीधे मार्ग पर ले जाता है तो कभी टेढ़े मेढ़े रास्तों पर।

तुम और तुम जैसी स्त्रियाँ

युवती आश्चर्य से आँखे फाड़े दादी की ओर देखकर बुदबुदाती है, ‘अरे दादी, हम सिर्फ एक ही बार प्यार कर सकते हैं।’

दादी उसे बहुत कुछ समझाती हैं। लेकिन युवती को लगता है कि दादी के समय की लड़कियां मर्यादाहीन हुआ करती थीं। दादी कहती हैं, तुम्हें लगता है कि तुम्हारा पति ताउम्र तुम्हें ही प्यार करता रहेगा। मैं तुम्हें बताती हूं कि समाज के अस्तित्व के लिए विवाह एक जरूरी चीज़ है, लेकिन यह हमारी जाति की प्रकृति में नहीं है. समझी? जीवन में अगर कुछ खूबसूरत है तो वह है प्रेम, तुम इसे गलत कैसे समझ सकती हो।

युवती कहती है, दादी मां, मैं तुमसे चुप होने की प्रार्थना करती हूं, बस अब और नहीं। 

युवती अपने घुटनों के बल झुक गई और ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि उसे सिर्फ एक गहन और अमर प्रेम का आशीर्वाद दे। दादी उसके माथे को चूमते हुए बड़े आत्मविश्वास से कहती हैं, सावधान मेरी प्यारी बच्ची! अगर तुम इन मूर्खतापूर्ण बातों में विश्वास करोगी तो जीवन भर दुखी रहोगी। 

बस यही कहानी है। 

भारतीय समाज में इस तरह की बात को आज भी मूर्खतापूर्ण  ही कहा जाएगा। कहा जाएगा कि यह कहानी फ्रांस की है और वहां का समाज आधुनिक और बोल्ड है। भारतीय समाज परंपराओं में यकीन रखने वाला समाज है।

लेकिन फ्रांस में यह कहानी लगभग 130 साल पहले लिखी गई थी। तो उम्मीद की जानी चाहिए कि इतने वर्षों में भारतीय समाज भी थोड़ा आधुनिक और बोल्ड हुआ होगा। कहानी में वृद्ध महिला दरअसल मनुष्य की उस प्रवृत्ति पर जोर दे रही है जो स्वाभाविक है। वृद्धा विवाह को समाज और परिवार के लिए जरूरी मानती है लेकिन साथ ही वह यह भी कहती है कि प्रेम और विवाह में कोई समानता नहीं है।

यह कहानी इसीलिए एक कालजयी कहानी है कि इसमें इंसान के स्वभाव की बात की जा रही है। लेकिन कथित मूल्यों और परंपराओं को कहानी पर आरोपित नहीं कर रहा। यही कहानी का मूल स्वर है। किसी भी कहानी में जब आदर्शों और परंपराओं का ध्यान रखते हैं तो कहानी को कमजोर कर देते हैं। जो लेखक ऐसा नहीं करते उनकी ही कहानियां कालजयी होती हैं। हिन्दी कहानी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि वह अपने खांचे से बाहर नहीं आती। शायद यही कारण है कि वह विश्व कहानी के बरक्स कहीं दिखाई नहीं देते। 

सुर , साज़ और मौसीक़ीः क़िस्से तवायफ़ों के
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सुधांशु गुप्त

तीन दशकों तक पत्रकारिता करने के बाद सुधांशु गुप्त अब पूरी तरह से साहित्य में रम गए हैं. आपके तीन कहानी संग्रह 'खाली कॉफी हाउस', 'उसके साथ चाय का आख़िरी कप' और 'स्माइल प्लीज़' प्रकाशित हो चुके हैं. आपकी कहानियां, सामाजिक ताने-बाने पर लेख और समीक्षाएं सारिका, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नया ज्ञानोदय, नवनीत, कादम्बिनी, दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, जनसत्ता, हरिभूमि, जनसंदेश, जनवाणी आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं और होती रहती हैं. रेडियो पर आपकी कई कहानियों का प्रसारण हो चुका है.

सुधांशु गुप्त

सुधांशु गुप्त

तीन दशकों तक पत्रकारिता करने के बाद सुधांशु गुप्त अब पूरी तरह से साहित्य में रम गए हैं. आपके तीन कहानी संग्रह 'खाली कॉफी हाउस', 'उसके साथ चाय का आख़िरी कप' और 'स्माइल प्लीज़' प्रकाशित हो चुके हैं. आपकी कहानियां, सामाजिक ताने-बाने पर लेख और समीक्षाएं सारिका, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नया ज्ञानोदय, नवनीत, कादम्बिनी, दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, जनसत्ता, हरिभूमि, जनसंदेश, जनवाणी आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं और होती रहती हैं. रेडियो पर आपकी कई कहानियों का प्रसारण हो चुका है.

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