डॉ. नूतन कुमारी की ग़ज़लें
आदतन सच अगर बताओगे,
मिस्ले आईना तोड़े जाओगे।
होगे शाख़-ए-समर अगर तुम भी
चोट पत्थर की ख़ूब खाओगे।
ग़ौर इस बात पर करो थोड़ा,
डूब कर ख़ुद किसे बचाओगे।
कब तलक ख़ुश्क शाखे दिल आख़िर,
आबे जज़्बात से पटाओगे।
अक्स जब बन गया है दिल में तो,
चाह कर भी कहाँ मिटाओगे।
संग सारे हटा दो राहों से,
ज़ख्म का दर्द सह न पाओगे।
आग जब जल रही है सीने में,
अश्क़ से कब तलक बुझाओगे।
तुम भी नूतन को ये बताओ तो,
कब तलक दर्दे दिल सुनाओगे।
इस अंधेरे को और क्या कहिए,
चाँद तारों का सिलसिला कहिए।
बन्द आँखों में है जहां सारा,
इस हक़ीक़त को मोजज़ा कहिए।
हो रही हैं जो दिल पे दस्तक सी,
आस कहिए कि आसरा कहिए।
ज़िस्मो-जां में घना अंधेरा है,
जो मुनव्वर है उसको क्या कहिए।
हाले दिल बिन कहे पता हो जब,
तब इसे दिल का राब्ता कहिए।
बाद मुद्दत के दिल हुआ शादाब,
इसको मौसम की ख़ुशअदा कहिए।
रब ने ख़ुशियाँ जो भेजी हैं घर में,
सर-ब-सर अब तो मरहबा कहिए।
दिल के कोने में गर जो मूरत हो,
इश्क़ कहिये या आशना कहिए।
कौन ‘नूतन’ का होगा तुम सा अब,
इस करम का भी शुक्रिया कहिए।
ग़म जफ़ा से निकाल रक्खा है
दिल का आलम खंगाल रक्खा है
कौन जीतेगा कौन हारेगा,
दोनों ने दिल उछाल रक्खा है।
हमनफ़स ने न जाने क्यों हमको,
कशमकश में ही डाल रक्खा है।
मेरे महबूब ने फ़क़त मेरे,
हक़ में रन्ज-ओ-मलाल रक्खा है।
उसके कूचे में किस तरह जाऊं,
मैं गया तो वबाल रखा है।
सोचती हूँ कि छोटे से दिल ने,
जाने क्या क्या सम्भाल रक्खा है।
आस उम्मीद छोड़ दे नूतन
इश्क़ में कब विसाल रक्खा है।
डॉ. नूतन कुमारी जमुई में रहती हैं. इतिहास में पीएचडी डॉ. नूतन ने प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से संगीत में प्रभाकर भी किया है. 1995 से ही वह सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में समाज के अति पिछड़े निम्नवर्गीय लोगों में महिलाओं और बच्चों के विकास के लिए काम कर रही हैं. अपने साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें हामी अज़हरी अवॉर्ड, आसनसोल, उर्दू अकादमी पटना फ़ऱोगे उर्दू से सम्मान, पशुपतिनाथ मिश्र आवॉर्ड, कवि अर्जुन पुरस्कार जैसे सम्मान मिल चुके हैं. आकाशवाणी से लोकसंगीत कार्यक्रमों और राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में उनकी सहभागिता लगातार बनी रहती है.